Principle of transfer of criminal case; on facts, apprehension-not reasonable. Application rejected. Allahabad High Court Uttar Pradesh

  “ प्रकाशनार्थ स्वीकृत” निनर्ण य सुरक्षित- 15.03.2022 निनर्ण य उद्घोनि"त- 01.04.2022 क संख्या . - 69 वाद :- स्र्थानान्तरर्ण प्रार्थ ना पत्र (आपराक्षि/क) संख्या - 285/ 2021 आवेदक :- शैलेन्द्र कुमार प्रजापक्षित निवपी :- उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य आवेदक के अक्षि/वक्ता :- रामराज प्रजापक्षित निवपी के अक्षि/वक्ता :- शासकीय अक्षि/वक्ता माननीय सौरभ श्याम शमशेरी , ( न्यायमूर्तित ) तथ्यात्मक प्रारुप 1. आवेदक (शैलेन्द्र कुमार प्रजापक्षित ) ने वत मान स्र्थानान्तरर्ण प्रार्थ ना पत्र अंतर्ग त /ारा 407 दण्ड प्रनिKया संनिLता (संेप में द. प्र.सं.) के माध्यम से सत्र परीर्ण संख्या 90 व" 2021, राज्य प्रक्षित शैलेन्द्र (मुकदमा अपरा/ संख्या 48 व" 2019 /ारा 376, 452, 506 भारतीय दण्ड संनिLता, र्थाना निवनवार, जिजला Lमीरपुर से अग्रसर) जो वत मान में अपर जनपद एवं सत्र न्याय/ीश एफ.टी.सी. Lमीरपुर के न्यायालय में लंनिTत Lै को जिजला Lमीरपुर के उक्त सत्र न्यायालय से उसी जिजला के निकसी दसरे सत्र न्यायालय में अन्तरिरत ू करने की प्रार्थ ना की Lै। 2. वत मान आवेदन के प्रस्तुत करने से पूव , आवेदक ने एक स्र्थानान्तरर्ण प्रार्थ ना पत्र जनपद एवं सत्र न्याया/ीश, Lमीरपुर के सम /ारा 2 408 भा.दं.सं. के अंतर्ग त उपरोक्त प्रार्थ ना के लिलये निकया र्था परन्तु वो जनपद एवं सत्र न्याया/ीश के आदेश निदनांक 4.10.2021 के द्वारा निनरस्त कर निदया र्गया। आवेदक का प 3. आवेदक के निवद्वान अक्षि/वक्ता श्री डी.के. मौया (आवेदक के अक्षि/वक्ता श्री राम राज प्रजापक्षित द्वारा निनदZशिशत) ने कर्थन निकया निक आवेदक के निवरुद्ध एक र्गलत मुकदमा दायर निकया र्गया Lै तर्था उक्षि]त जां] करे निTना Lी उसके निवरुद्ध आरोप पत्र प्रेनि"त कर निदया र्गया Lै। आवेदक वत मान में जमानत पर Lै तर्था अवर न्यायालय के सम काय वाLी में उपस्थिस्र्थत Lो रLा Lै। 4. आवेदक के निवद्वान अक्षि/वक्ता ने स्र्थानान्तरर्ण की प्रार्थ ना के प में कर्थन निकया की- (i) आवेदक को कोई पूव सू]ना निदये निTना Lी, जT अशिभयोजन साक्ष्य संख्या 2 का ब्यान लिलखा जा रLा र्था, उसी दौरान उपरोक्त सत्र परीर्ण फास्ट ट्रैक कोट - II को स्र्थानान्तरिरत कर निदया र्गया और आवेदक को अनिग्रम क्षितशिर्थ की सू]ना के अभाव में साी की प्रक्षित परीा का अवसर भी समाप्त कर निदया र्गया। इस संदभ में उसने एक प्रार्थ ना पत्र भी दालिखल निकया। जT कोरोना मLामारी के कारर्ण सम्पूर्ण देश में काय वानिLयां/र्गक्षितनिवक्षि/यां रुक सी र्गयी र्थी, तT भी पूवा ग्रL से ग्रजिसत Lोकर, आवेदक के निवरुद्ध र्गैर जमानती वारन्ट जारी कर निदया र्गया, जो Tाद में प्रार्थ ना पत्र देने पर निनरस्त निकया र्गया। (ii) निवद्वान अक्षि/वक्ता ने यL भी कर्थन निकया निक सत्र न्यायालय में काम कर रLे पेशकार (जर्गदीश निमश्रा) जो पीनिjता के अक्षि/वक्ता के दोस्त Lै वो इस मामले में पूवा ग्रL से ग्रजिसत Lो मामले में आवेदक के निवरुद्ध आदेश करवा रLा Lै। आवेदक की अनुपस्थिस्र्थक्षित को उपस्थिस्र्थक्षित निदखा कर , प्रक्षित परीा के लिलये 3 क्षितशिर्थ निनयत करवा दी, जिजसकी सू]ना आवेदक व उसके अक्षि/वक्ता को न Lोने के कारर्ण अर्गली निनयत क्षितशिर्थ पर वो अनुपस्थिस्र्थत रLे, जिजसके कारर्ण प्रक्षितपरीा का अवसर समाप्त कर निदया र्गया। (iii) उपरोक्त निनवेदन के आ/ार पर निवद्वान अक्षि/वक्ता ने कर्थन निकया निक अर्गर मेरे पकार को यर्थोक्षि]त आशंका Lै निक न्याय नLीं Lो पायेर्गा, तो सत्र परीर्ण को स्र्थानान्तरिरत कर निदया जाना ]ानिLए। निनष्प सुनवाई का आश्वासन, न्याय व्यवस्र्था की प्रर्थम अनिनवाय ता Lै। अतः प्रार्थ ना पत्र स्वीकार निकया जाये। 5. प्रक्षितवादी संख्या 2 (निवनोद) जो प्रर्थम सू]ना रिरपोट के शिशकायतकता Lै उनको वत मान प्रार्थ ना पत्र का नोनिटस Tजात खास तामील कराया र्गया परन्तु न तो वो स्वयं और न Lी अक्षि/वक्ता के माध्यम से न्यायालय के सम उपस्थिस्र्थत Lुए जTनिक इस कारर्ण से दो Tार वत मान प्रार्थ ना पत्र पर अर्गली क्षितशिर्थ भी निनयत की र्गयी। राज्य का प 6. राज्य का प उसके अतरिरक्त शासकीय अक्षि/वक्ता ने न्यायालय के सम रखा। उन्Lोने न्यायालय का ध्यान जनपद एवं सत्र न्याया/ीश के आदेश निदनांक 4.10.2021 पर आकर्षि"त करवाया जिजसके द्वारा आवेदक की स्र्थानान्तरर्ण प्रार्थ ना पत्र (अन्तर्ग त /ारा 408 दं0 प्र 0 सं0) निनरस्त निकया र्गया Lै। उक्त आदेश में यL उल्लेलिखत Lै निक जT आवेदक के निवद्वान अक्षि/वक्ता को प्रार्थ ना पत्र पर TLस करने Lेतु आमंनित्रत निकया र्गया तो उनके द्वारा यL कर्थन निकया र्गया निक उन्Lे कुछ नLीं कLना Lै तर्था प्रार्थ ना पत्र का परिरशीलन करके Lी आदेश पारिरत कर दें। प्रार्थ ना पत्र भी नवीन अक्षि/वक्ता ने दालिखल निकया र्था जो सत्र परीर्ण में आवेदक के अक्षि/वक्ता नLीं Lै। आवेदक को अशिभयोजन साक्ष्य संख्या 2 को प्रक्षितपरीा की अनुमक्षित उनके द्वारा प्रार्थ ना 4 पत्र को स्वीकार करते Lुए दी जा ]ुकी Lै। वत मान में शिशकायतकता द्वारा एक प्रार्थ ना पत्र /ारा 319 भा.दं.प्र.सं. के अन्तर्ग त दो अन्य लोर्गों को तलT करने Lेतु निदया र्गया Lै। जिजस पर कोई आदेश पारिरत नLीं Lुआ Lै। आवेदक द्वारा स्र्थानान्तरर्ण का प्रार्थ ना पत्र मात्र मामले को निवलस्थिम्Tत रखने के उद्देश्य से निदया र्गया Lै तर्था प्रकरर्ण में कोई यर्थोक्षि]त आकांा नLीं Lै तर्था ऐसा कारर्ण भी नLीं Lै निक आवेदक को न्याय निमलने की संभावना न Lो, अतः प्रार्थ ना पत्र निनरस्त निकया जाये। 7. आवेदक व राज्य के निवद्वान अक्षि/वक्ताओ को सुना व पत्रावली की ं सम्यक परिरशीलन निकया। संदभ - आपराक्षि/क मामलों के अन्तरर्ण की निवक्षि/- 8. भारतीय दण्ड प्रनिKया संनिLता के अध्याय 31 में आपराक्षि/क मामलों के अन्तरर्ण की प्रनिKया उल्लेलिखत की र्गई Lै। /ारा 408 के अन्तर्ग त मामलों और अपीलों को अन्तरिरत करने की सत्र न्याय/ीश की शनिक्त का उल्लेख Lै, जTनिक /ारा 407 के अंतर्ग त मामलों और अपीलों को अन्तरिरत करने की उच्च न्यायालय की शनिक्त का उल्लेख निकया र्गया Lै। संदभ के लिलये दोनों /ारा निनम्न उल्लेलिखत की जा रLी Lै- “407. मामलों और अपीलों को अन्तरिरत करने की उच्च न्यायालय की शनिक्त- (1) जT कभी उच्च न्यायालय को यL प्रतीत कराया जाता Lै निक- (क) उसके अ/ीनस्र्थ निकसी दंड न्यायालय में ऋजु और पपातरनिLत जां] या निव]ारर्ण न Lो सके र्गा ; अर्थवा (ख) निकसी असा/ारर्णतः कनिzन निवक्षि/ प्रश्न के उzने की संभाव्यता Lै ; अर्थवा 5 (र्ग) इस /ारा के अ/ीन आदेश इस संनिLता के निकसी उपTं/ द्वारा अपेक्षित Lै, या पकारों या साक्षियों के लिलए सा/ारर्ण सुनिव/ाप्रद Lोर्गा, या न्याय के उद्देश्यों के लिलए समी]ीन Lै, तT वL आदेश दे सके र्गा निक- (I) निकसी अपरा/ की जां] या निव]ारर्ण ऐसे निकसी न्यायालय द्वारा निकया जाए जो /ारा 177 से 185 तक के (जिजनके अन्तर्ग त ये दोनों /ाराएं भी Lैं) अ/ीन तो अर्षिLत नLीं Lै, निकन्तु ऐसे अपरा/ की जां] या निव]ारर्ण करने के लिलए अन्यर्था सम Lै ; (ii) कोई निवशिशष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके प्राक्षि/कार के अ/ीनस्र्थ निकसी दंड न्यायालय से ऐसे समान वरिरष्ठ अक्षि/कारिरता वाले निकसी अन्य दंड न्यायालय को अंतरिरत कर निदया जाए ; (iii) कोई निवशिशष्ट मामला सेशन न्यायालय को निव]ारर्णार्थ सुपुद कर निदया जाए ; अर्थवा (iv) कोई निवशिशष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अन्तरिरत कर दी जाए, और उसका निव]ारर्ण उसके सम निकया जाए। (2) उच्च न्यायालय निन]ले न्यायालय की रिरपोट पर , या निLतTद्ध पकार के आवेदन पर या स्वप्रेरर्णा पर काय वाLी कर सकता Lै : परन्तु निकसी मामले को एक Lी सेशन खंड के एक दंड न्यायालय से दसरे दंड न्यायालय को अन्तरिरत करने ू के लिलए आवेदन उच्च न्यायालय से तभी निकया जाएर्गा जT ऐसा अन्तरर्ण करने के लिलए आवेदन सेशन न्याया/ीश को कर निदया र्गया Lै और उसके द्वारा नामंजूर कर निदया र्गया Lै। 6 (3) उप/ारा (1) के अ/ीन आदेश के लिलए प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा निकया जाएर्गा, जो उस दशा के जिसवाय जT आवेदक राज्य का मLाक्षि/वक्ता Lो, शपर्थपत्र या प्रक्षितज्ञान द्वारा समर्थिर्थत Lोर्गा। (4) जT ऐसा आवेदन कोई अशिभयक्त व्यनिक्त करता Lै ु , तT उच्च न्यायालय उसे निनदेश दे सकता Lै निक वL निकसी प्रक्षितकर के संदाय के लिलए, जो उच्च न्यायालय उप/ारा (7) के अ/ीन अक्षि/निनर्णÇत करे, प्रक्षितभुओ सनिLत या रनिLत Tं/पत्र निनष्पानिदत करे। ं (5) ऐसा आवेदन करने वाला प्रत्येक अशिभयक्त व्यनिक्त लोक ु अशिभयोजक को आवेदन की लिललिखत सू]ना उन आ/ारों की प्रक्षितलिलनिप के सनिLत देर्गा जिजन पर वL निकया र्गया Lै, और आवेदन के र्गुर्णावर्गुर्ण पर तT तक कोई आदेश न निकया जाएर्गा जT तक ऐसी सू]ना के निदए जाने और आवेदन की सुनवाई के Tी] कम से कम ]ौTीस घंटे न Tीत र्गए Lों। (6) जLां आवेदन निकसी अ/ीनस्र्थ न्यायालय से कोई मामला या अपील अंतरिरत करने के लिलए Lै, वLां यनिद उच्च न्यायालय का समा/ान Lो जाता Lै निक ऐसा करना न्याय के निLत में आवश्यक Lै, तो वL आदेश दे सकता Lै निक जT तक आवेदन का निनपटारा न Lो जाए तT तक के लिलए अ/ीनस्र्थ न्यायालय की काय वानिLयां, ऐसे निनTं/नों पर, जिजन्Lें अक्षि/रोनिपत करना उच्च न्यायालय zीक समझे, रोक दी जाएंर्गी: परन्तु ऐसी रोक /ारा 309 के अ/ीन प्रक्षितप्रे"र्ण की अ/ीनस्र्थ न्यायालयों की शनिक्त पर प्रभाव न डालेर्गी। (7) जLां उप/ारा (1) के अ/ीन आदेश देने के लिलए आवेदन खारिरज कर निदया जाता Lै वLां, यनिद उच्च न्यायालय की यL राय Lै निक आवेदन तुच्छ या तंर्ग करने वाला र्था तो वL आवेदक को आदेश दे सकता Lै 7 निक वL एक Lजार रुपए से अनक्षि/क इतनी राशिश, जिजतनी वL न्यायालय उस मामले की परिरस्थिस्र्थक्षितयों में समुक्षि]त समझे, प्रक्षितकर के तौर पर उस व्यनिक्त को दे जिजसने आवेदन का निवरो/ निकया र्था। (8) जT उच्च न्यायालय निकसी न्यायालय से निकसी मामले का अन्तरर्ण अपने सम निव]ारर्ण करने के लिलए उप/ारा (1) के अ/ीन आदेश देता Lै तT वL ऐसे निव]ारर्ण में उसी प्रनिKया का अनुपालन करेर्गा जिजस मामले का ऐसा अन्तरर्ण न निकए जाने की दशा में वL न्यायालय करता। (9) इस /ारा की कोई Tात /ारा 197 के अ/ीन सरकार के निकसी आदेश पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएर्गी। 408. मामलों और अपीलों को अन्तरिरत करने की सेशन न्याया/ीश की शनिक्त– (1) जT कभी सेशन न्याया/ीश को यL प्रतीत कराया जाता Lै निक न्याय के उद्देश्यों के लिलए यL समी]ीन Lै निक इस उप/ारा के अ/ीन आदेश निदया जाए, तT वL आदेश दे सकता Lै निक कोई निवशिशष्ट मामला उसके सेशन खंड में एक दंड न्यायालय से दसरे दंड न्यायालय को ू अन्तरिरत कर निदया जाए। (2) सेशन न्याया/ीश निन]ले न्यायालय की रिरपोट पर या निकसी निLतTद्ध पकार के आवेदन पर या स्वप्रेरर्णा पर काय वाLी कर सकता Lै। (3) /ारा 407 की उप/ारा (4), (5), (6), (7) और (9) के उपTं/ इस /ारा की उप/ारा (1) के अ/ीन आदेश के लिलए सेशन न्याया/ीश को आवेदन के संTं/ में वैसे Lी लार्गू Lोंर्गे जैसे वे /ारा 407 की उप/ारा (1) के अ/ीन आदेश के लिलए उच्च न्यायालय को आवेदन के संTं/ में लार्गू Lोते Lैं, जिसवाय इसके निक उस /ारा की उप/ारा (7) 8 इस प्रकार लार्गू Lोर्गी मानो उसमें आने वाले “एक Lजार रुपए” शब्दों के स्र्थान पर “दो सौ प]ास रुपए” शब्द रख निदए र्गए Lैं।” 9. उच्चतम न्यायालय ने कई निनर्ण यों में स्र्थानान्तरर्ण के कारर्णों की व्याख्या की Lै। न्याय न के वल Lोना ]ानिLये परन्तु Lुआ Lै ऐसा दर्थिशत भी Lोना ]ानिLये। अन्तरर्ण की निवक्षि/ सुस्र्थानिपत Lै निक अर्गर निकसी पकार को यL यर्थोक्षि]त आशंका Lै निक उसे न्याय की प्रानिप्त नLीं Lो पायेर्गी तो मामला या अपील का अन्तरर्ण कर देना ]ानिLए। इस नाते पकार को यL दशा ने की आवश्यकता नLीं Lै निक न्याय अनिनवाय रुप से निवफल Lो जायेर्गा, अर्गर वो ऐसे परिरस्थिस्र्थक्षितयां निदखाने में सफल Lोता जाता Lै, जिजनसे यL अनुमान लर्गाया जा सकता Lै, निक उसको आशंका Lै, जो परिरस्थिस्र्थक्षितयों के मद्देनजर यर्थोक्षि]त भी Lै तो स्र्थान्तरर्ण का मामला Lो जायेर्गा। परन्तु मात्र अशिभकर्थन की निकसी मामले में न्याय न Lोने की आशंका Lै, स्र्थान्तरर्ण का पया प्त कारर्ण नLीं Lोर्गा तर्था न्याय के उद्देश्यों के लिलये समी]ीन भी नLीं Lोर्गा। न्यायालय को यL निन/ा रिरत करना Lोर्गा निक उक्त आशंका यर्थोक्षि]त Lै न निक काल्पनिनक जो मात्र अनुमान और अटकलों पर आ/ारिरत Lै। 10. स्र्थान्तरर्ण के आवेदन को निनस्तारिरत करने के कोई निनयनिमत या सख्त निनयम निवनिLत नLीं निकये जा सकते Lै तर्था मामले की परिरस्थिस्र्थक्षितयों के संदभ में Lी आवेदन निनस्तारिरत निकये जाने ]ानिLये। पकारों व साक्षियों की सुनिव/ा का अर्थ अनिनवाय रुप से आवेदक की Lी सुनिव/ा नLीं Lै, जो न्यायालय के सम आशंका की निमथ्य /ारर्णा के आ/ार पर आवेदन करता Lै। स्र्थान्तरर्ण के संदभ में सुनिव/ा का तात्पय अशिभयोजन , अन्य अशिभयोर्गी, साक्षियों व वृLत रुप से समाज की सुनिव/ा से Lै। निनष्प सुनवाई का आश्वासन, न्याय व्यवस्र्था की प्रर्थम अनिनवाय ता Lै। आपराक्षि/क निव]ारर्ण का 9 उद्देश्य, ऐसा उक्षि]त व निनष्प न्याय प्रदान करना Lै, जो निकसी भी प्रकार के वाह्य प्रक्षितफल से अप्रभानिवत Lो। 11. प्रकरर्ण में अर्गर यL निवनिदत Lो जाये निक समाज का निव]ारर्ण के निनष्पता पर निवश्वास र्गंभीर रुप से दT ल Lो र्गया Lै ु , पीनिjत प स्र्थानान्तरर्ण के लिलये आवेदन कर सकता Lै। अर्गर आपराक्षि/क निव]ारर्ण निनष्प व स्वतंत्र नLीं Lै और अर्गर वो पपात पूर्ण Lो तो आपराक्षि/क न्याय व्यवस्र्था दाँव पर लर्ग जायेर्गी और जन सामान्य का व्यवस्र्था के प्रक्षित निवश्वास अस्थिस्र्थर Lो जायेर्गा। 12. न्याय की निनष्पता, संनिव/ान का मूल भूत निवशिशष्टता Lै, जो यL अपेा करता Lै निक न्याय/ीश, शासकीय अशिभयोजक, अपरा/ी का अक्षि/वक्ता या न्यायालय निमत्र का सामाजिजक निLतों में ताल मेल रखते Lुए तर्था अपरा/ी के Lैजिसयत व शासन के प्रभाव से अप्रभानिवत Lोकर काय करेंर्गे। (देखें : र्गुरु]रन दास ]ड्ढा प्रक्षित राजस्र्थान राज्य ए आई आर : (1966) एस सी 1418, अमरिरन्दर सिंसL प्रक्षित प्रकाश सिंसL Tादल : (2009) 6 एस सी सी 260, लालू प्रसाद यादव प्रक्षित झारखण्ड राज्य : (2013) 8 एस सी सी 593, नाLर सिंसL यादव प्रक्षित भारत संघ (2011) 1 एस सी सी 307 व उसमान र्गनी आदम भाई वोLरा प्रक्षित र्गुजरात राज्य व एक अन्य : (2016) 3 एस सी सी 370, राजकुमार साTू प्रक्षित मे. साTू ट्रेड प्राइवेट लिलनिमटेड : 2021 एस सी सी ऑनलाइन एस सी 378) निवश्ले"र्ण व निनष्क" 13. आवेदक की निनष्प व स्वतंत्र न्याय न निमलने की आशंका का आ/ार निव]ारर्ण न्यायालय में काय रत एक कम ]ारी Lै, जो कशिर्थत रुप से पीनिjता के अक्षि/वक्ता का निमत्र Lै और अपने पद का अनुक्षि]त उपयोर्ग कर न्याक्षियक प्रनिKया में पीनिjता के अनुकूल व आवेदक के प्रक्षितकूल आदेश 10 न्यायालय से पारिरत करवाने में सLायता करता Lै तर्था इसी प्रभाव के कारर्ण न्यायालय ने अशिभयोजन साक्ष्य की प्रक्षितपरिरा का अवसर समाप्त कर निदया र्था। परन्तु यL आकांा पत्रावली पर न्यायालय की आदेश के परिरशीलन से निनरा/ार प्रतीत Lोती Lै, क्यों निक आवेदक को प्रक्षितपरीा का आवेदन अपर न्यायालय द्वारा 10.2.2021 को स्वीकार निकया जा ]ुका Lै तर्था अशिभयोजन साक्ष्य संख्या 2 (वन्दना) को तलT भी निकया जा ]ुका Lै। परन्तु आवेदक के Lाजिजर न Lोने के कारर्ण उसके निवरुद्ध र्गैर जमानतीय वारन्ट निदनांक 05.03.2021 व 10.3.2021 को जारी निकये र्गये जो प्रार्थ नापत्र के आ/ार पर आदेश निदनांक 02.04.2021 द्वारा निनरस्त कर निदये र्गये। यLाँ यL उल्लेख करना आवश्यक Lै निक उपरोक्त आदेश निवक्षि/नुसार व उक्षि]त प्रनिKया के अंतर्ग त निकये Lै। जिजनका निनदान भी प्रनिKया के अंतर्ग त निकया र्गया Lै। इसी दौरान शिशकायतकता ने एक प्रार्थ ना पत्र /ारा 319 भा.द.सं., के अन्तर्ग त दालिखल कर निदया तर्था पत्रावली वत मान में उक्त प्रार्थ ना पत्र के निनस्तारर्ण के स्तर पर Lै। अतः आवेदक का स्र्थान्तरर्ण का आ/ार यर्थोक्षि]त आकांा पर आ/ारिरत नLीं Lै। उपरोक्त वर्थिर्णत आदेश के कारर्ण यL यर्थोक्षि]त आकांा नLीं Lो जाती Lै निक आवेदक को निनष्प व उक्षि]त न्याय नLीं प्राप्त Lोर्गा और यL भी नLीं प्रतीत Lोता Lै निक आवेदक के प्रक्षितकूल पारिरत आदेश निकसी पूवा ग्रL या दTाव या अनुक्षि]त प्रभाव के अंतर्ग त पारिरत निकये र्गये Lैं। अतः आवेदक इस न्यायालय के सम, ऐसा कोई यर्थोक्षि]त कारर्ण या ऐसी परिरस्थिस्र्थक्षितयां जिजनके कारर्ण यर्थोक्षि]त आकांा Lो निक निनष्प न्याय नLीं निमल पायेर्गा, प्रस्तुत करने में असमर्थ रखा Lै और न Lी कोई ऐसा कारर्ण उपस्थिस्र्थत Lै निक वत मान प्रकरर्ण में स्र्थान्तरर्ण की प्रार्थ ना स्वीकार करना, न्याय के उद्देश्य के लिलये समी]ीन Lोर्गा। 11 14. उपरोक्त निवक्षि/क व तथ्यात्मक निवश्ले"र्ण का एक Lी निनष्क" Lै निक वत मान प्रकरर्ण में आवेदक, स्र्थान्तरर्ण के लिलये उक्षि]त या निनष्प न्याय न निमलने का कोई यर्थोक्षि]त या वास्तनिवक आकांा स्र्थानिपत करने में असमर्थ रLा Lै। अतः वत मान आवेदन में की र्गई स्र्थान्तरर्ण की प्रार्थ ना TलLीन Lोने के कारर्ण अस्वीकार की जाती Lै तर्था वत मान प्रार्थ ना पत्र इस आदेश के सार्थ अंक्षितम रुप से निनस्तारिरत की जाती Lै निक सत्र न्यायालय प्रकरर्ण की सुनवाई शीघ्रता व निनयमनुसार करेर्गा तर्था इस संदभ में इस न्यायालय द्वारा पारिरत आदेश निदनांक 07.06.2021, रनिवन्द्र प्रताप शाLी उफ पप्पू शाLी Tनाम उत्तर प्रदेश राज्य (आपराक्षि/क प्रकीर्ण जमानत प्रार्थ ना पत्र संख्या- 20591/2021) के मामले में 'त्वरिरत न्याय’ के निवश्ले"र्ण को ध्यान में रखेर्गा। आदेश निदनांक :- 01.04.2022 अव/ेश

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Pass port officer can retain and stop, kept pending, timely released ordered by Supreme Court of India SPL Cri 4297 of 2023

Victim Has Right To Participate In Trial But No Right To Be Impleaded In Criminal Revision: Delhi High Court Nupur Thapliyal 25 May 2024 4:20 PM

No permission of Court is required for passport even if criminal is under investigation or pending for trail in Court Allahabad High Court Lucknow Bench Writ C No. 5587 of 2024 (Umapati Vs. union of India & Ors) Justice Alok Mathur and Arun Kumar Singh Deshwal J